है सहमी सी ये ख़ामोशी, बहुत गहरा अँधेरा है।
किसी की बेरुखी ने दूर तक कोहरा बिखेरा है।
नज़र कुछ भी नहीं आता, समझ भी दूर बैठी है।
मेरे शानों पे मानो मौत का साया घनेरा है।
किसी की बेरुखी ने दूर तक कोहरा बिखेरा है।
नज़र कुछ भी नहीं आता, समझ भी दूर बैठी है।
मेरे शानों पे मानो मौत का साया घनेरा है।
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