Friday, April 19, 2019

rishte

जब रिश्तों के पन्नों में से
चाहत की स्याही मिट जाए,
और कोरे कागज़ की मानिंद
कुछ भी न उसमे नज़र आये।

क्या ऐसे रिश्ते की खातिर,
खुद को तडपाना वाजिब है?
क्या ख़ुद अपने ही हाथों से,
ख़ुद को ही मिटाना वाजिब है?