Tuesday, January 1, 2013

janani

है उनकी कोख शर्मिंदा, दरिंदों की जो जननी हैं।
कलंकित उनका दामन है, दरिंदों की जो जननी हैं।

मुझे अफ़सोस उनपर है, जो यह सब जान कर के भी,
यही कहते हैं इस पर भी  "ये इस औरत की करनी है".

उन्हें अहसास तब होगा, अगर घर खुद का जल जाये,
मगर अफ़सोस, तब भी आँख तो औरत की भरनी है।

उन्हें लटका के फांसी पर, ख़तम होगा नहीं कुछ भी।
जो गन्दी सोच है, वो इस तरह से मर न पायेगी।
दरिन्दे तब भी घूमेंगे, वही वहशत डराएगी।
न होगा चैन और न दूर तक राहत ही आएगी।

किया जो कोख को रुसवा, तो आगे कुछ नहीं होगा।
ना शोषित और ना शोषण,..अरे जीवन न जब होगा।
किसे तुम माँ, किसे बेटी, किसे बहना बुलाओगे।
जो औरत ही नहीं होगी, तो जिन्द भी रूठ जानी है।


यदि चाहत हो राहत की, तो बदलो सोच को अपनी,
अभी भी वक़्त है, संभलो,...संभालो कौम को अपनी।
संभालो आती नस्लों को, उन्हें यह बात कहनी है।
नहीं यह पैर की जूती, ये औरत है ये जननी है।

है पाया इससे ही जीवन, इसी ने खून से सींचा।
इसीने जाग कर रातों की नीदें तुम पे वारी हैं।
तुम्हारी चोट के दर्दों की आहें इसने भरनी हैं।
नहीं यह पैर की जूती, ये औरत है ये जननी है।

ये औरत है, ................................ये जननी है।




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