मेरे जज़्बात मुझसे जब कभी भी बात करते हैं,
मेरी तन्हाईयों को खुद से ही आबाद करते हैं।
कभी इनकी कदर होती नहीं तो टूट जाते हैं,
जिसे अपना समझते हैं, ये उससे रूठ जाते हैं।
जुबां से बोल तो पाते नहीं लेकिन,
जो कहना चाहते हैं वो नज़र से कह ही जाते हैं।
कोई समझे कि शीशे की तरह नाज़ुक ये होते हैं,
पहुँचती ठेस ग़र है तो बिखर के टूट जाते हैं।
जिन्हें हम अपना हाल-ए-दिल सुनते हैं,
वही अक्सर हमारी आँख को जी भर रुलाते हैं।
उन्हें सब कुछ पता होता है मेरी चोट का लेकिन,
मेरे जज़्बात को वो तब भी अक्सर तोड़ जाते हैं।
मेरे जज़्बात मुझसे जब कभी भी बात करते हैं,
मेरी तन्हाईयों को खुद से ही आबाद करते हैं।