दिए हैं ज़ख्म इस तरह..कि मुझसे दर्द भी रूठा,
ज़बां पे उफ़ भी नहीं है..निगाह सन्न पड़ी है.....
बड़ी कातिल है यह कारीगरी तेरी अरे या रब,
गले को काट कर पूँछा..क्यूँ सांसें बंद पड़ी हैं.....
ज़बां पे उफ़ भी नहीं है..निगाह सन्न पड़ी है.....
बड़ी कातिल है यह कारीगरी तेरी अरे या रब,
गले को काट कर पूँछा..क्यूँ सांसें बंद पड़ी हैं.....
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