कहीं कुछ खो गया,
कुछ मिट गया,
कुछ मर गया है।
किसी को तोड़ कर,
दम घोंट कर,
रुस्वा किया है।
हमारी सोच को यह क्या हुआ है?
किसी की माँ,
या बेटी,
या बहन थी।
कभी हंसती भी थी
या ऐसे ही
घर मैं दफ़न थी।
बड़ी तकलीफ में हूँ,
क्षुब्ध हूँ,
नाराज़ हूँ।
हर इक औरत की
सिसकी हूँ,
भरी आवाज़ हूँ।
ये वहशत,
बेहयाई और
दरिंदों का शहर है।
गली, नुक्कड़ पे
हर इक मोड़ पर
इनका कहर है।
हमें जीवन मिला
जीने का हक
क्यूँ छिन गया है?
भरोसा शब्द
पर से ही
भरोसा उठ गया है।
हमारी सोच को यह क्या हुआ है?
हमारी सोच को यह क्या हुआ है???????????
कुछ मिट गया,
कुछ मर गया है।
किसी को तोड़ कर,
दम घोंट कर,
रुस्वा किया है।
हमारी सोच को यह क्या हुआ है?
किसी की माँ,
या बेटी,
या बहन थी।
कभी हंसती भी थी
या ऐसे ही
घर मैं दफ़न थी।
बड़ी तकलीफ में हूँ,
क्षुब्ध हूँ,
नाराज़ हूँ।
हर इक औरत की
सिसकी हूँ,
भरी आवाज़ हूँ।
ये वहशत,
बेहयाई और
दरिंदों का शहर है।
गली, नुक्कड़ पे
हर इक मोड़ पर
इनका कहर है।
हमें जीवन मिला
जीने का हक
क्यूँ छिन गया है?
भरोसा शब्द
पर से ही
भरोसा उठ गया है।
हमारी सोच को यह क्या हुआ है?
हमारी सोच को यह क्या हुआ है???????????
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