Sunday, August 8, 2010

Varsha

बूंदों ने धरती को सींचा,
अंकुर फूटे, कोंपल निकलीं,
पोधों पर ओस की बूंदों से,
इठलाती हुई इक कली खिली !

सब जान गए वर्षा आई,
अपने संग हरियाली लायी,
बेजान सी सूखी सी धरती,
लगती है देखो धुली-धुली !

सौंधी सी ख़ुशबू फैल गयी,
हर ओर घटा के छाते ही,
काले बादल के बीच कहीं,
जब नाच उठी चंचल बिजली !

हर मोर ने पंख पसार दिए,
पपिहों ने कलरव छेड़ दिया,
मेरे भी अन्दर हूक उठी,
जब झूम के लहराई बदली !

वर्षा ने मुझमें भी छेड़े,
कुछ राग नए, कुछ बोल नए,
मेरे मन के भी कोने में,
आशाओं ने करवट ले ली !

No comments:

Post a Comment