Friday, August 12, 2011

rishte

जब रिश्तों के पन्नों में से
चाहत की स्याही मिट जाए
और कोरे कागज़  की मानिंद
कुछ भी न उसमें नज़र आये

क्या ऐसे रिश्ते की खातिर
खुद को तडपाना अच्छा है?
आंसू की तुम्हारे कदर नहीं
वहां खुद को रुलाना अच्छा है?

रिश्ते तो दिल से होते हैं
जब दिल उचटा रिश्ता टूटा
फिर चाहे लाख जतन कर लो
जुड़ता ही नहीं जो दिल टूटा......

neer

नीर है जीवन...
कहीं यह प्यास है इक घूँट की..
नीर है जीवन....
कहीं यह आस है इक ठूंठ की..

बूँद की ही राह तकता
रोज़ ही प्यासा चकोर
बूँद ही तो फेर देती
रंग की कूंची हर ओर

जल बिना जीवन नहीं है
जान लो इस सत्य को 
इसके रक्षण में है जीवन
मान लो इस तथ्य को.......

Tuesday, April 5, 2011

Bitiya

पहली बार तुम्हें जब देखा,
कुछ नया नया महसूस हुआ.
नन्ही आँखों से, हाथों से,
अनसुना सा एक पैग़ाम मिला.

"मैं तुमसे ही उपजी हूँ माँ,
है अंश तुम्हारा ही मुझ में.
तेरी ही धड़कन की धक् धक्,
है तेरा ही लहू मुझ में."

जब बाँहों मैं भर कर तुझको,
अपने सीने से लगा लिया .
तेरी धड़कन मेरी धड़कन,
यह फ़र्क भी मैंने मिटा दिया .

तेरे नन्हे नन्हे हाथों ने,
तब आँचल को मेरे थामा.
उस पल ममता के मतलब को 
मैंने वास्तव में पहचाना. 

इक अंदर से आवाज़ उठी.
यह तेरी ही परछाई है.
तेरे ही खून ने सींचा है,
तुझसे ही जीवन पाई है.

इस नन्ही जान को इस पल से ,
हर दुःख से तुझे बचाना है .
चाहे अपनी जान पे बन आये,
पर इसको पार लगाना है.

जो तुम चाहो तो चमकेगी,
जो तुम चाहो मुस्काएगी.
नन्ही सी कलि तेरे हाथों की ,
फूलों की तरह खिल जाएगी.

कल पढ़ लिख कर सारे जग मैं,
जब करेगी रोशन नाम तेरा.
गौरव से छाती फूलेगी,
जब माँ उसकी कहलाएगी.

हर भले बुरे का मतलब तुम 
उसको अच्छे से सिखा देना.
अगली पीढी इस दुनिया की,
उससे ही जीवन पायेगी.......

उससे ही जीवन पायेगी .
जाने कब आज के लोगों को यह बात समझ में आएगी ......................................... 







Saturday, October 16, 2010

dil

इक घुटन, इक बोझ सा सीने पे है...
हर दफा इक दर्द को पीने से है..

बारहा सोचा की बस अब हद हुई
दर्द की सरहद वहीँ लम्बी हुई

तेरी चाहत में लुटा कर जीस्त को
खुद मिटाया अपने ही वजूद को

अपनी ही नज़रों से गिर कर बार बार
तेरी चाहत का ही कर के ऐतबार

चल पड़े फिर चक दामन सी लिया
फट पड़ा सीना तो इक पल रो लिया

तय किया लंबा सा रस्ता सोच कर
कल नयी सुबहा नया होगा सफ़र

और जब जीना ही बन जाये सज़ा
घोंप दे खंजर जुबां के बेवजह

क्या नफ़ा यूं ज़िन्दगी जीने से है
बेहतरी खुद सांस सी लेने से है

इक घुटन, इक बोझ सा सीने पे है..
इक घुटन, इक बोझ सा सीने पे है......

Sunday, August 8, 2010

Varsha

बूंदों ने धरती को सींचा,
अंकुर फूटे, कोंपल निकलीं,
पोधों पर ओस की बूंदों से,
इठलाती हुई इक कली खिली !

सब जान गए वर्षा आई,
अपने संग हरियाली लायी,
बेजान सी सूखी सी धरती,
लगती है देखो धुली-धुली !

सौंधी सी ख़ुशबू फैल गयी,
हर ओर घटा के छाते ही,
काले बादल के बीच कहीं,
जब नाच उठी चंचल बिजली !

हर मोर ने पंख पसार दिए,
पपिहों ने कलरव छेड़ दिया,
मेरे भी अन्दर हूक उठी,
जब झूम के लहराई बदली !

वर्षा ने मुझमें भी छेड़े,
कुछ राग नए, कुछ बोल नए,
मेरे मन के भी कोने में,
आशाओं ने करवट ले ली !

new

A new frame....
A new name....
for a new game....
something's changing somewhere.

for what???
and how???
I don't know now....
but, on my lips there's a prayer.

For my aims...
and the wishes...
and the goals...that are there.

Let the change be a push...
and a shove...
but always with a care.

Lest I hurt someone
with my mutterings
and my words...
Let me be true, let me be fair.
Let me be TRUE, let me be FAIR....ALWAYS.